ईरान-इजरायल युद्ध का बढ़ता संकट: बार-बार के हमलों से पर्यावरण पर भारी असर

Samachar Times 24 डेस्क:
दुनिया में चल रहे युद्ध और संघर्ष अब सिर्फ सीमाओं तक सीमित नहीं हैं। इनका सीधा असर हमारे पर्यावरण पर भी पड़ रहा है। ईरान-इजरायल के बीच बढ़ता तनाव अब वैश्विक चिंता का विषय बन गया है। एक ओर जहां सुरक्षा के मोर्चे पर अलर्ट है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण पर मंडराते खतरे को लेकर विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं।
अबादान रिफाइनरी बना इजरायल के निशाने पर!
Conflict and Environment Observatory की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान की अबादान रिफाइनरी इजरायल के निशाने पर हो सकती है। यह रिफाइनरी ईरान की घरेलू ईंधन जरूरतों का 25% हिस्सा पूरा करती है और इसकी लोकेशन इसे सैन्य दृष्टि से एक आसान लक्ष्य बनाती है।
यह रिफाइनरी शत्त-अल-अरब नदी के किनारे स्थित है, जो ईरान और इराक के बीच सीमा का काम करती है। अगर इस पर हमला होता है, तो इसका असर सिर्फ ईरान तक सीमित नहीं रहेगा। तेल रिसाव और रासायनिक प्रदूषण के जरिए यह संकट इराक तक फैल सकता है।
ईरान-इजरायल युद्ध का बढ़ता संकट:
सीमा पार प्रदूषण की आशंका, लाखों लोगों की सेहत पर खतरा
अगर रिफाइनरी पर बमबारी होती है, तो उसके बाद जो धुआं और ज़हरीले रसायन वातावरण में घुलेंगे, वह जल, मिट्टी और हवा को बुरी तरह प्रदूषित कर सकते हैं। इससे वहां की खेती, पीने का पानी और लोगों की सेहत पर बड़ा खतरा मंडरा सकता है। यह संकट सिर्फ ईरान-इराक की सीमा तक ही नहीं रुकेगा, बल्कि इसका असर पूरे क्षेत्र पर पड़ सकता है।
जैव विविधता पर पड़ेगा गहरा असर
जंगली जीवों और पौधों पर भी इसका गहरा असर होगा। नदी के किनारे बसे हुए जैव विविधता भंडार इस हमले से प्रभावित हो सकते हैं, जिससे इकोसिस्टम असंतुलित हो जाएगा।
युद्ध नहीं, पर्यावरण की रक्षा की है जरूरत
आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रही है, ऐसे में युद्धों का यह नया पर्यावरणीय चेहरा बेहद डरावना है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर समय रहते इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में हमें इसके भयानक परिणाम झेलने पड़ सकते हैं।
ईरान और इजरायल के बीच जारी तनाव से न सिर्फ राजनीतिक और सैन्य हालात खराब हो सकते हैं, बल्कि इसका सीधा असर प्रकृति और मानव जीवन पर पड़ेगा। ऐसे समय में दुनिया को चाहिए कि वह युद्ध नहीं, पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दे।
ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव ने न सिर्फ भू-राजनीतिक हालात को जटिल बना दिया है, बल्कि अब इस टकराव के पर्यावरणीय प्रभाव भी सामने आने लगे हैं। नई रिपोर्टों के मुताबिक, ईरान के दक्षिणी तट पर मौजूद तेल निर्यात टर्मिनलों को भी संभावित हमलों का लक्ष्य माना जा रहा है। अगर इन पर हमला होता है, तो इससे ईरान की अर्थव्यवस्था तो प्रभावित होगी ही, साथ ही वैश्विक तेल बाजार भी हिल सकता है।
तेल की कीमतों में उछाल और पर्यावरण पर असर
विशेषज्ञों का कहना है कि तेल की कीमतों में तेज़ी आने से जहां एक ओर ऊर्जा की मांग कुछ समय के लिए घट सकती है और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में अस्थायी कमी आ सकती है, वहीं दूसरी ओर यह तेल की नई खोज और खनन को बढ़ावा दे सकता है। इसका मतलब है—वनों की कटाई, समुद्री जीवन को खतरा और ज़मीन-जलीय प्रदूषण।
परमाणु ठिकानों पर हमला: तबाही का नया अध्याय?
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ईरान की परमाणु सुविधाएं भी इजरायली रडार पर हो सकती हैं। इन पर हमला हुआ तो नतीजे न सिर्फ पर्यावरण के लिए, बल्कि पूरे मध्य पूर्व की स्थिरता के लिए विनाशकारी होंगे। परमाणु रिसाव से रेडिएशन का खतरा, जल स्रोतों का जहरीला होना और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर—ये सब संभावित परिणाम हैं।
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