Yogi Adityanath in Nepal: नेपाल में Hindu Monarchy की मांग और भारत की रणनीतिक भूल

Yogi Adityanath in Nepal: 

नेपाल में फिर से उठी Hindu Monarchy की मांग: क्यों Yogi Adityanath के पोस्टर बन रहे हैं नया राजनीतिक प्रतीक?

हाल के महीनों में नेपाल की सड़कों पर एक दिलचस्प नज़ारा देखने को मिला – राजशाही की वापसी की मांग करते प्रदर्शन, और उनमें भारतीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पोस्टर। यह कोई संयोग नहीं है। ये संकेत हैं एक उभरती विचारधारा के – जहां नेपाल की राजशाही के लिए लगाव और भारत में बढ़ती हिंदू राष्ट्रवाद की लहर आपस में मिलती दिखाई दे रही है।

 नेपाल में Hindu Monarchy: एक विचारधारात्मक मिलन

नेपाल में कुछ समूहों को लगता है कि हिंदू बहुल राष्ट्र और राजशाही का मेल देश को स्थिरता दे सकता है – खासकर जब क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढ़ रहा हो। भारत में BJP और RSS जैसे संगठनों के लिए यह एक “सभ्यतागत विजय” और रणनीतिक अवसर की तरह प्रस्तुत किया जा रहा है। लेकिन यह सोच इतिहास की गलत व्याख्या और रणनीतिक अदूरदर्शिता का उदाहरण है।

इतिहास क्या कहता है?

भारत में यह मान्यता बन गई है कि नेपाल की राजशाही हमेशा भारत समर्थक रही है, लेकिन हकीकत अलग है:

  • 1950 में भारत की मदद से राजा त्रिभुवन की वापसी जरूर हुई थी, लेकिन उसके बाद सब कुछ बदला।

  • 1960 में राजा महेंद्र ने लोकतांत्रिक सरकार को भंग कर सत्ता अपने हाथ में ली और चीन की ओर झुकाव बढ़ा।

  • 2005-08 के दौरान राजा ज्ञानेन्द्र ने सत्ता हथियाई और भारत से संबंधों को और खराब किया।

इन शासकों ने हिंदू राष्ट्रवाद का प्रयोग किया सत्ता केंद्रित करने के लिए, ना कि भारत से रिश्ते मज़बूत करने के लिए। यानी, राजशाही का मतलब जरूरी नहीं भारत-हितैषी शासन

 Hindu State vs Hindu Monarchy

यह समझना ज़रूरी है कि हिंदू राष्ट्र की मांग और राजशाही की वापसी एक ही बात नहीं हैं। Nepali Congress जैसे लोकतांत्रिक दल हिंदू राज्य का समर्थन करते हैं, लेकिन वे राजशाही के विरोधी हैं। लोग संविधान में बदलाव चाहते हैं, तानाशाही नहीं।

 वर्तमान राजनीतिक निराशा और जनभावनाएं

2008 में राजशाही खत्म होने के बाद नेपाल की राजनीति स्थिर नहीं रही। कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई है। संघीय प्रणाली (federalism) को लोग भ्रष्टाचार और अक्षमता का प्रतीक मानने लगे हैं। इसीलिए अब कहा जाता है:

“पहले एक राजा था, अब 761 हैं।”

इस निराशा ने राजशाही और हिंदू राष्ट्र की कल्पनाओं को फिर से ज़मीन दी है।

 योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें क्यों लहराई जा रही हैं?

नेपाल के प्रदर्शनकारियों द्वारा योगी आदित्यनाथ की तस्वीरें लहराना सिर्फ भारत के लिए समर्थन नहीं है – यह RSS-BJP की हिंदुत्व विचारधारा की स्वीकृति भी दर्शाता है। योगी आज भारत में धार्मिक सत्ता और राजनीतिक शक्ति के प्रतीक बन चुके हैं, और नेपाल के राजशाही समर्थकों के लिए एक “आदर्श मॉडल” बन गए हैं।

लेकिन भारत को क्या नुकसान हो सकता है?

भारत ने 1989 और 2015 में दो अनौपचारिक ब्लॉकेड्स लगाए थे, जिससे नेपाल में भारत के प्रति नाराजगी बढ़ी। इस नाराजगी का फायदा चीन ने उठायाबिना हस्तक्षेप के निवेश और बुनियादी ढांचे पर फोकस करके।

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अगर भारत अब राजशाही समर्थकों का खुला समर्थन करता है, तो वह नेपाल के लोकतांत्रिक दलों को अलग-थलग कर सकता है – जिससे चीन की पकड़ और मजबूत होगी।

स्थिरता का रास्ता: विचारधारा नहीं, व्यावहारिकता

नेपाल की असली जरूरत है:

  • रोज़गार,

  • गरीबी उन्मूलन,

  • शासन सुधार,

  • और आर्थिक सहयोग

भारत ने पहले ही Arun-III Hydropower Project, Jaynagar–Bardibas Railway, और BBIN initiative जैसे कदम उठाए हैं। यही वो चीज़ें हैं जो स्थाई सहयोग बनाती हैं – ना कि राजशाही की पुरानी यादें।

 नतीजा: रणनीति चाहिए, रोमांटिक विचार नहीं

भारत की दक्षिण एशिया में ताकत उसकी लोकतांत्रिक छवि रही है, ना कि तानाशाही या धार्मिक राष्ट्रवाद। अगर भारत नेपाल में लोकतंत्र और आर्थिक साझेदारी को मज़बूत करता है, तो वह चीन को हर मोर्चे पर टक्कर दे सकता है। लेकिन अगर उसने राजशाही और धर्म के नाम पर हस्तक्षेप किया, तो नतीजा उल्टा भी हो सकता है।

“Kathmandu में योगी का पोस्टर, Nagpur में जोश भर सकता है – लेकिन New Delhi में चिंता भी।”

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