Indus Waters Treaty:
भारत सरकार ने शुक्रवार को एक सख्त बयान जारी करते हुए 1960 की ऐतिहासिक सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) के तहत गठित ‘Court of Arbitration’ को पूरी तरह से अवैध करार दिया है। विदेश मंत्रालय ने साफ कहा कि इस कथित न्यायाधिकरण की कोई वैधानिक मान्यता नहीं है और इस पर भारत का भरोसा कभी रहा ही नहीं।
यह बयान उस समय आया है जब कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने भारत के किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े मामलों की सुनवाई को लेकर खुद की वैधानिकता (jurisdiction) को सही ठहराने के लिए एक “supplemental award” जारी किया।
कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन की वैधानिकता पर भारत का सख्त रुख
विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा:
“भारत ने कभी इस कथित Court of Arbitration की वैधानिकता को नहीं माना है। यह कोर्ट खुद 1960 की सिंधु जल संधि का उल्लंघन करते हुए गठित किया गया था। इसलिए इसकी कार्यवाही और इसके किसी भी फैसले को भारत गैरकानूनी और शून्य मानता है।”
यह supplemental award दरअसल इस बात पर केंद्रित था कि कोर्ट के पास इन मामलों की सुनवाई करने का अधिकार है या नहीं—not the merits of the Kishenganga or Ratle projects themselves.
आतंकवाद के खिलाफ भारत का निर्णायक कदम: संधि को किया गया “अस्थायी निलंबन” में
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पहुगलाम (Pahalgam) में हुए पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को “abeyance” (अस्थायी रूप से निलंबित) कर दिया है।
विदेश मंत्रालय के मुताबिक:
“जब तक पाकिस्तान सीमा-पार आतंकवाद को ‘विश्वसनीय और अपूरणीय रूप से’ बंद नहीं करता, तब तक भारत सिंधु जल संधि के किसी भी दायित्व को निभाने के लिए बाध्य नहीं रहेगा।”
Indus Waters Treaty
यह एक ऐतिहासिक मोड़ है, क्योंकि 1960 से अब तक इस संधि को दोनों देशों ने निभाया है—even during wars.
इस पूरे विवाद का संदर्भ क्या है?
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किशनगंगा और रातले परियोजनाएं जम्मू-कश्मीर में भारत द्वारा संचालित हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स हैं।
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पाकिस्तान का दावा है कि ये परियोजनाएं सिंधु जल संधि का उल्लंघन करती हैं।
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लेकिन भारत का कहना है कि ये प्रोजेक्ट संधि के तहत पूरी तरह वैध हैं।
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पाकिस्तान ने एकतरफा तरीके से Court of Arbitration का गठन कराया, जिसे भारत ने पूरी तरह अस्वीकार कर दिया।
भारत के इस फैसले का क्या मतलब है?
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भारत ने साफ कर दिया है कि वह इस कथित कोर्ट के किसी भी फैसले को मान्यता नहीं देता।
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पाकिस्तान को अब अपने रुख पर पुनर्विचार करना होगा क्योंकि भारत अब पूरी तरह से आक्रामक मोड में है।
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अगर पाकिस्तान आतंकवाद पर लगाम नहीं लगाता, तो भारत सिंधु जल संधि से खुद को पूरी तरह अलग कर सकता है।
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