तिल की फसल में पानी देने का तरीका

तिल की फसल में पानी देने का तरीका:

जानिए ज्यादा उपज और अधिक तेल पाने के लिए जरूरी बातें

तिल एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है, जो भारत के कई हिस्सों में वर्षा आधारित खेती के रूप में उगाई जाती है। लेकिन यदि उचित समय पर सिंचाई की जाए, तो तिल की फसल से न केवल अधिक उत्पादन लिया जा सकता है, बल्कि बीजों में तेल की मात्रा भी बेहतर हो जाती है। आइए जानें तिल की खेती में सिंचाई से जुड़ी जरूरी जानकारी, जो हर किसान भाई-बहन के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है।

भारत में तिल (सेसम) की खेती हजारों वर्षों से की जाती रही है। यह न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि इसके बीजों से निकलने वाला तेल स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लाभकारी होता है। तिल मुख्य रूप से वर्षा आधारित फसल मानी जाती है, लेकिन यदि समय पर और वैज्ञानिक तरीके से सिंचाई की जाए, तो इससे न केवल फसल की उपज में बढ़ोतरी होती है, बल्कि बीजों में तेल की मात्रा भी अधिक निकलती है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि तिल की फसल में सिंचाई कब, कितनी और कैसे करनी चाहिए ताकि किसान भाई-बहनों को अधिक लाभ मिल सके

तिल की फसल में सिंचाई क्यों ज़रूरी है?

तिल सूखा सहन कर सकने वाली फसल है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इसे सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। वास्तव में, महत्वपूर्ण अवस्थाओं पर की गई हल्की सिंचाई फसल की उत्पादकता में 35% से 50% तक का इजाफा कर सकती है। साथ ही बीजों में तेल की मात्रा भी अधिक हो जाती है, जिससे बाजार में बेहतर दाम मिल सकते हैं।

तिल की फसल में सिंचाई का सही समय

1. पहली सिंचाई: पतला करने के बाद (10-15 दिन की अवस्था)

जब बीज अंकुरित होकर छोटे पौधों का रूप ले लेते हैं और किसान उन्हें पतला करते हैं, तो हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे पौधों की जड़ें अच्छी तरह फैलती हैं।

2. दूसरी सिंचाई: 4-5 पत्ती अवस्था (वानस्पतिक विकास)

यह समय पौधों के लिए अत्यंत संवेदनशील होता है। इस समय हल्की सिंचाई से शाखाओं का विकास बेहतर होता है।

3. तीसरी सिंचाई: फूल आने के समय (प्रजनन अवस्था)

तिल की फसल में फूल आना और फलियाँ बनना सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है। इस समय की गई सिंचाई फसल के आकार, बीज की गुणवत्ता और तेल की मात्रा को सीधा प्रभावित करती है।

4. चौथी सिंचाई: फलियाँ बनने की अवस्था (यदि पानी उपलब्ध हो)

यदि सिंचाई की सुविधा हो, तो फली बनने के समय एक और सिंचाई करना उपज को और बेहतर कर सकता है। ध्यान रखें, फसल पकने से पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए, अन्यथा फसल गिर सकती है और कटाई में समस्या हो सकती है।

सिंचाई की मात्रा और गहराई:

  • हर बार सिंचाई करते समय पानी की गहराई 3 सेमी से अधिक नहीं होनी चाहिए

  • अधिक गहराई तक सिंचाई करने से जड़ें कमजोर हो सकती हैं और पौधों में रोग लगने का खतरा बढ़ जाता है।

  • सिंचाई हमेशा सुबह या शाम को करें, ताकि वाष्पीकरण से पानी की बर्बादी न हो।

कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए सुझाव

जिन इलाकों में सिंचाई की सुविधा सीमित है, वहाँ केवल दो सिंचाई से भी बेहतर परिणाम लिए जा सकते हैं—एक 4-5 पत्ती अवस्था में और दूसरी फूल आने पर।
यदि किसी कारणवश केवल एक बार सिंचाई करनी हो, तो वह प्रजनन अवस्था (फूल आने पर) में करनी चाहिए।

सिंचाई से किसानों को मिलने वाले लाभ

  •  उपज में 35% से 52% तक बढ़ोतरी

  •  बीजों में अधिक तेल की मात्रा

  •  बेहतर गुणवत्ता की फसल

  •  कम लागत में अधिक मुनाफा

  • कटाई आसान और समय पर होती है

तिल की खेती को यदि वैज्ञानिक तरीके से किया जाए और सिंचाई को फसल की अवस्थाओं के अनुसार नियोजित किया जाए, तो यह एक अत्यंत लाभकारी फसल बन सकती है। भारत के लाखों किसान यदि सिंचाई प्रबंधन की इस तकनीक को अपनाएं, तो तिल की खेती में एक नई क्रांति आ सकती है।

तो किसान भाइयों और बहनों, अगली बार जब आप तिल की फसल बोएं, तो सिंचाई को नज़रअंदाज़ न करें—बल्कि इसे अपनी खेती की सफलता की कुंजी बनाएं।

सुझाव:
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Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य कृषि अनुसंधान, विशेषज्ञ सुझावों और प्रचलित कृषि पद्धतियों पर आधारित है। तिल की फसल में सिंचाई से संबंधित सभी सुझाव शैक्षिक उद्देश्य से दिए गए हैं ताकि किसान भाई-बहनों को खेती में मदद मिल सके।SamacharTimes24 यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि जानकारी सटीक और अद्यतन हो, लेकिन किसी भी प्रकार की कृषि गतिविधि शुरू करने से पहले स्थानीय कृषि विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या सरकारी कृषि अधिकारी से परामर्श अवश्य लें।

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