Asia Cup: पाकिस्तान हॉकी टीम को भारत आने की मंजूरी पर आदित्य ठाकरे का विरोध, केंद्र पर उठाए सवाल
एशिया कप में पाकिस्तान की एंट्री पर आदित्य ठाकरे का सवाल: “एक तरफ आतंकवाद, दूसरी तरफ मेहमाननवाज़ी?”
जब भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों में कड़वाहट हो, सरहद पर सैनिक शहीद होते हों, और आतंकी हमलों की कहानियां अब भी ताज़ा हों—ऐसे माहौल में पाकिस्तान की हॉकी टीम को भारत बुलाना कितना उचित है? यही सवाल शिवसेना (यूबीटी) के नेता आदित्य ठाकरे ने खड़ा किया है। उन्होंने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए पूछा कि एक तरफ हम पाकिस्तान की दोहरी नीतियों की आलोचना करते हैं, और दूसरी तरफ उन्हीं की टीम को हमारे देश में खेल के लिए बुला लेते हैं?
टूर्नामेंट का आयोजन बिहार के राजगीर में
27 अगस्त से 7 सितंबर तक एशिया कप हॉकी टूर्नामेंट बिहार के ऐतिहासिक शहर राजगीर में आयोजित होना है। यह वही टूर्नामेंट है जिसमें भारत, पाकिस्तान, जापान, कोरिया, चीन, मलेशिया समेत कुल आठ टीमें भाग लेंगी। लेकिन टूर्नामेंट से अधिक चर्चा का विषय बन गई है पाकिस्तान की भागीदारी।
बीते कुछ महीनों में भारत और पाकिस्तान के रिश्ते और भी तनावपूर्ण हुए हैं। कश्मीर से लेकर पंजाब तक सुरक्षा एजेंसियां अलर्ट पर हैं। ऐसे में पाकिस्तान की टीम को भारत आने देने की अनुमति को “खेल के नाम पर राजनीतिक नरमी” समझा जा रहा है।
खेल मंत्रालय का रुख
खेल मंत्रालय ने यह साफ किया है कि वह बहु-राष्ट्रीय टूर्नामेंट में किसी भी टीम की भागीदारी का विरोध नहीं करता। मंत्रालय के अनुसार, यह निर्णय खेल की भावना को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, न कि राजनीतिक समीकरणों को देखकर। पीटीआई के मुताबिक, मंत्रालय ने पाकिस्तान टीम को NOC (No Objection Certificate) जारी कर दिया है।
लेकिन क्या खेल भावना से बड़ा है राष्ट्रीय सुरक्षा?
यही सवाल आदित्य ठाकरे ने उठाया। उन्होंने कहा,
“जब हम क्रिकेट टूर्नामेंट्स के लिए पाकिस्तान से खेलने से मना कर देते हैं, तब हॉकी में यह दरवाजा क्यों खोल दिया गया? क्या अब बीसीसीआई भी क्रिकेट एशिया कप के लिए पाकिस्तान को बुलाने की मांग करेगा?”
ठाकरे ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार को एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए—या तो खेल के नाम पर द्विपक्षीय संबंधों को दरकिनार कर दिया जाए, या फिर हर खेल में समान नीति अपनाई जाए।
पाकिस्तान में भी असमंजस
यह दिलचस्प है कि पाकिस्तान की हॉकी टीम को लेकर खुद पाकिस्तान में भी संशय की स्थिति बनी हुई है। पाकिस्तान हॉकी महासंघ और खेल बोर्ड ने अब तक भारत आने की अनुमति के लिए अपनी सरकार से क्लियरेंस नहीं लिया है। ऑपरेशन सिंदूर जैसे घटनाक्रमों ने पाकिस्तान की यात्रा को लेकर खतरे की स्थिति और गंभीर बना दी है।
दोहरा रवैया या कूटनीतिक चाल?
आदित्य ठाकरे जैसे युवा नेता जब सरकार से सवाल पूछते हैं, तो यह सिर्फ राजनीति नहीं होती—बल्कि आम जनता के मन में उठने वाले सवालों की एक प्रतिध्वनि होती है। क्या पाकिस्तान की टीम को भारत बुलाना वाकई “खेल भावना” है? या फिर यह कूटनीतिक मजबूरी?
इस पूरे घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच सिर्फ युद्ध या शांति की बात नहीं है, बल्कि “खेल” अब एक नया रणक्षेत्र बन चुका है, जहां हर पास, हर गोल और हर निर्णय का अपना एक राजनीतिक असर होता है।
यदि सरकार ने पाकिस्तान टीम को भारत आने की अनुमति दी है, तो उसे इसका स्पष्ट कारण भी जनता के सामने रखना होगा। क्योंकि सवाल सिर्फ हॉकी का नहीं है—सवाल उस सम्मान का है, जो भारत के हर शहीद के खून में बसा है।